अभिव्यक्ति
Wednesday, January 20, 2010
नीलकंठ
नीलकंठ बनकर हम बेबस ज़हर पीते रहे;
हुकमरानो की दी हुई मौत को ज़िन्दगी समझ जीते रहे.
समेट पाते कैसे खुदा की नेमत और दी हुई खुशी को,
अँधेरे में आंसुओं से अपना चाक दमन सीते रहे.
1 comment:
अति Random
said...
very nice
July 2, 2010 at 11:12 PM
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1 comment:
very nice
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