Wednesday, January 20, 2010

नीलकंठ

नीलकंठ बनकर हम बेबस ज़हर पीते रहे;
हुकमरानो की दी हुई मौत को ज़िन्दगी समझ जीते रहे.

समेट पाते कैसे खुदा की नेमत और दी हुई खुशी को,
अँधेरे में आंसुओं से अपना चाक दमन सीते रहे.