अभिव्यक्ति
Wednesday, January 20, 2010
नीलकंठ
नीलकंठ बनकर हम बेबस ज़हर पीते रहे;
हुकमरानो की दी हुई मौत को ज़िन्दगी समझ जीते रहे.
समेट पाते कैसे खुदा की नेमत और दी हुई खुशी को,
अँधेरे में आंसुओं से अपना चाक दमन सीते रहे.
1 comment:
अति Random
said...
very nice
July 2, 2010 at 11:12 PM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
काशी का वो मंदिर जिसके कपाट ग्रहण के सूतक काल में भी नहीं होते हैं बंद
साधु,सिपाही और हिंदू-मुस्लिम आतंकवाद में कहां है पुलिस, राजनेता मीडिया... और….. कहाँ है राष्ट्र?
साध्वी और सैन्य अफसर आतंकवादी हैं या नही यह सच तो देश ज़रूर देखेगा और कई अनसुलझे सत्यों की तरह इस सत्य को जानने का अनंत इंतज़ार भी रहेगा. श...
सपना चौधरी, राखी सावंत और अर्शी खान ने लगाए ठुमके तो झूम उठा बनारस
सपना चौधरी, राखी सावंत और अर्शी खान ने लगाए ठुमके तो झूम उठा बनारस
काशी का वो मंदिर जिसके कपाट ग्रहण के सूतक काल में भी नहीं होते हैं बंद
1 comment:
very nice
Post a Comment