Tuesday, April 14, 2009

खबरों की खबर-इशारों को समझो भाई...



"कोने में रोते रहे आडवाणी : मनमोहन"

वाह मनमोहन जी वाह... जय हो आपकी, अडवाणी के आंसू दिख गए, सवा अरब भारतीय भी रोज़ खून के आंसू खुले आम रोते हैं, ये तो कभी नहीं दिखाई दिया आपको

"उप्र में आपातकाल से ज्यादा ज्यादती: मुलायम"

नेता जी! आपने अपने कार्यकाल में जिस परंपरा की नींव रखी थी, बहन जी उसीको आगे बढा रही हैं...

"मोदी इतिहास पढ़ें: संजय खान"
इशारा समझो नरेन्द्र भाई, गुजरात में जय हनुमान और टीपू सुलतान धारावाहिक की सीडी की बिक्री बढ़वाओ।


"नेताओं की जुबानी जंग में आयोग का दखल"
त्रुटि के लिए क्षमा, सही खबर इस प्रकार है: "नेताओं की जुबानी जंग में आयोग का ज़ुबानी दखल "

Tuesday, April 7, 2009

जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत



कहावत सुनी थी, घरे में थरिया गिरल, बचल कि फूट गईल, केकरा के मालूम॥ मतलब घर में बर्तन गिरा , बचा कि टूट गया पडोसी को इससे क्या मतलब... उसने सिर्फ बर्तन गिरने कि आवाज़ सुनी थी... कुछ हाल वैसा ही जूतम पैजार का है, जूता लगे न लगे मीडिया ने और जनता ने बस इतना जाना कि जूता फेंका गया।

जूते का निशाना जहाँ था वहां बड़ा सटीक बैठा, २५ साल से सुलगते बुझते मुद्दे को ईंधन मिल चुका है... वैसे लोग चिदंबरम जी की बड़ी तारीफें कर रहें हैं कि देखिये कितने चौक्कने थे, बच गए... काश कि ये चौकन्नापन उनके कैप्टेन में भी होता तो शायद इस देश में हर दूसरे हफ्ते होने वाला जान-माल का नुक्सान तो बच जाता।

एक खबर और पढ़ी "कांग्रेस ने जूता फेंकने वाले को माफ किया"... जाइये बड़े मियां, बड़ा ही गन्दा और निहायत ही वाहियात मजाक कर रहे हैं... इसका भी जवाब एक कहावत से "सौ सौ जूते खाए घुस घुस तमाशा देखे"... कितने जूते खाने के बाद इन नेताओं को अक्ल आएगी कि वे खुदा नहीं जो किसी को माफ़ कर दें?

तीसरी खबर "चिदम्बरम पर जूते फेंकने की घटना की भाजपा ने निंदा की" - भला क्यों न करें आखिर हम पेशा जो हैं, सपने और विश्वास बेचने का कारोबार दोनों का है।

चिदंबरम साहब जैसा व्यक्ति भी जूते कि मार से व्यथित होकर कह बैठा "लोग भावना में बहकर ऐसा कर सकते हैं लेकिन मैं उन्हें माफ़ करता हूँ। " माफ़ करियेगा चिदंबरम साहब आप और आपके राजनैतिक साथी इन्ही भावनाओं को तो नहीं समझ पाए. इन्ही उबलती भावनाओं ने आज़ादी की जंग की शुरुआत की थी. गोरे अंग्रेजों ने भी पहले इन्हें isolated incidents ही समझा था... भावनाओं को समझो मंत्री जी, नेताजी... ये जो कभी-कभार इक्का दुक्का गुबार का लीकेज है, किसी दिन सुनामी ले आएगा...

एक साथी ने लिखा "आज पत्रकारों के लिए काला दिन है"... माना कि और भी बहुत लोकतान्त्रिक तरीके हैं विरोध के.... बड़े भाई, आज जब हर चीज़ को आंकने के पैमाने बदल गए हों। तो गाँधी जी के ज़माने का लोकतान्त्रिक तरीका कितना कारगर होगा ??? प्रत्यक्ष्म किम् प्रमाणम्.. क्या इरोम शर्मिला को न्याय मिल गया? और घटिया उदहारण दूं ..
देश भर को "गांधीगिरी" का पाठ पढ़ने वाला हमारा आपका, मीडिया का दुलारा "मुन्ना
भाई" रंगे सियार की तरह अपनी हकीकत खोल चुका है, नेताओं की हुआं-हुआं
सुनी नहीं कि जाग गया अन्दर का संजय दत्त। इकबालिया बयान देने वाला कह रहा है कि,
"कांग्रेस ने फंसवाया था." जिस बाप को ज़िन्दगी भर शर्मसार करते रहे अब उसकी मौत को राजनीतिक रंग दे रहे हैं... वाह रे वाह गाँधीगिरी और वाह रे वाह मेरे मुन्ना...
मुद्दों से तो हमेशा बचते रहे नेताजी लोग, जूते से भी बच गए लेकिन जूते ने मुद्दा दुबारा सुरसा के खुले मुंह की तरह राजनीतिज्ञों के सामने रख दिया है, बच सको तो बच लो...

खबरों का शीर्षक शायद सबसे उपयुक्त होता ... "जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत"

झूठे वादे दो ... जूते लो

जब किसी जख्म का इलाज़ ढंग से ना हो तो, तो सड़ेगा ही न,व्यवसायिक तौर तरीके जरनैल सिंह को क्यों सिखाने में क्यों जुट गए हैं लोग बाग़? क्या इस देश की कानून व्यवस्था को चलाने वाली सरकार वाकई में अपना काम इमानदारी से कर रही है? कम से कम जरनैल सिंह दलाली करने वाले नेताओं और पत्रकारों से तो लाख गुना बेहतर हैं। नेताओं और सरकार को करारा जवाब है, कलम खरीद सकते हो पर जूते नहीं रोक पाओगे ...

विडम्बना है, कि हाथ उठाने वाले कि हरकत हर कोई देखता है, मुह चिढ़ाने वाले कि हरकत किसी को नज़र नहीं आती। चिदंबरम साहब तो केवल उस भ्रष्ट व्यवस्था के अक्स मात्र है, जिसके ऊपर जूता चला है। जिस व्यवस्था पर जूता चला है वह इस के ही काबिल है, बस व्यक्ति गलत सामने पड़ गया।

चिदंबरम साहब एक व्यक्ति के रूप में ईमानदार और एक काबिल कार्यकारी हो सकते हैं... लेकिन जब गवंई मनई लट्ठ लेकर डकैतों को दौड़ाता है, तो ये नहीं देखता कि कौन सा डकैत कम खूंखार है...

चिदंबरम साहब ने जरनैल सिंह को माफ़ ज़रूर कर दिया होगा पर राजनीतिज्ञों को समझ लेना होगा, कि अब जनता भ्रष्ट और नकारे नुमाइंदो को इतनी आसानी से माफ़ नहीं करने वाली...