Thursday, December 24, 2009

Arey Ghonchoo Aal is Vel

Jab janta ho out of control,
mudde ko karke gol,
besharmi dikha ke bol
khilli udaa ke bol
arey bhaiya aal is vel
arey Ghonchu aal is vel
arey bhaiya aal is vel...

Friday, December 11, 2009

Yaadein

Subah Papa ka us par daftar jaana,
toll tax, ek chakkar hame ghumana.

Sham ko uska taxi ban jaana,
raaste me ruk-ruk tan jaana..

Seedhe to koi baat naa hoti,
Bina tedhe huey start naa hoti.

Sach hai, Jo kal tha wo nahi hai aaj...
Ab to Yaadon me hi milega Hamara Bajaj.

(A tribute to BAJAJ Scooters)

Saturday, November 21, 2009

THAKREY PRAJATI KE NAAG

Thakrey Prajati ke Naagon ko ham media walon ne hi paal posh kar bada kiya hai... Kisi bhi Thakrey ne apna muh kya khola channels par 'breaking news' chalne lagti hai... Inke fufkarne ko ham ahamiyat dekar badhawa dete hain aur ye shah paakar hame hi dasne daud padte hain. Aur bhi states me Khshetrawad hai, lekin wahan ke kisi dalal ko hamne itni tawazzo nahi di... Inki khabren black out kardo fir dekho kaise in publicity ke bhookhon ke aatmhatya ki breaking news milti hai media ko.

Tuesday, April 14, 2009

खबरों की खबर-इशारों को समझो भाई...



"कोने में रोते रहे आडवाणी : मनमोहन"

वाह मनमोहन जी वाह... जय हो आपकी, अडवाणी के आंसू दिख गए, सवा अरब भारतीय भी रोज़ खून के आंसू खुले आम रोते हैं, ये तो कभी नहीं दिखाई दिया आपको

"उप्र में आपातकाल से ज्यादा ज्यादती: मुलायम"

नेता जी! आपने अपने कार्यकाल में जिस परंपरा की नींव रखी थी, बहन जी उसीको आगे बढा रही हैं...

"मोदी इतिहास पढ़ें: संजय खान"
इशारा समझो नरेन्द्र भाई, गुजरात में जय हनुमान और टीपू सुलतान धारावाहिक की सीडी की बिक्री बढ़वाओ।


"नेताओं की जुबानी जंग में आयोग का दखल"
त्रुटि के लिए क्षमा, सही खबर इस प्रकार है: "नेताओं की जुबानी जंग में आयोग का ज़ुबानी दखल "

Tuesday, April 7, 2009

जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत



कहावत सुनी थी, घरे में थरिया गिरल, बचल कि फूट गईल, केकरा के मालूम॥ मतलब घर में बर्तन गिरा , बचा कि टूट गया पडोसी को इससे क्या मतलब... उसने सिर्फ बर्तन गिरने कि आवाज़ सुनी थी... कुछ हाल वैसा ही जूतम पैजार का है, जूता लगे न लगे मीडिया ने और जनता ने बस इतना जाना कि जूता फेंका गया।

जूते का निशाना जहाँ था वहां बड़ा सटीक बैठा, २५ साल से सुलगते बुझते मुद्दे को ईंधन मिल चुका है... वैसे लोग चिदंबरम जी की बड़ी तारीफें कर रहें हैं कि देखिये कितने चौक्कने थे, बच गए... काश कि ये चौकन्नापन उनके कैप्टेन में भी होता तो शायद इस देश में हर दूसरे हफ्ते होने वाला जान-माल का नुक्सान तो बच जाता।

एक खबर और पढ़ी "कांग्रेस ने जूता फेंकने वाले को माफ किया"... जाइये बड़े मियां, बड़ा ही गन्दा और निहायत ही वाहियात मजाक कर रहे हैं... इसका भी जवाब एक कहावत से "सौ सौ जूते खाए घुस घुस तमाशा देखे"... कितने जूते खाने के बाद इन नेताओं को अक्ल आएगी कि वे खुदा नहीं जो किसी को माफ़ कर दें?

तीसरी खबर "चिदम्बरम पर जूते फेंकने की घटना की भाजपा ने निंदा की" - भला क्यों न करें आखिर हम पेशा जो हैं, सपने और विश्वास बेचने का कारोबार दोनों का है।

चिदंबरम साहब जैसा व्यक्ति भी जूते कि मार से व्यथित होकर कह बैठा "लोग भावना में बहकर ऐसा कर सकते हैं लेकिन मैं उन्हें माफ़ करता हूँ। " माफ़ करियेगा चिदंबरम साहब आप और आपके राजनैतिक साथी इन्ही भावनाओं को तो नहीं समझ पाए. इन्ही उबलती भावनाओं ने आज़ादी की जंग की शुरुआत की थी. गोरे अंग्रेजों ने भी पहले इन्हें isolated incidents ही समझा था... भावनाओं को समझो मंत्री जी, नेताजी... ये जो कभी-कभार इक्का दुक्का गुबार का लीकेज है, किसी दिन सुनामी ले आएगा...

एक साथी ने लिखा "आज पत्रकारों के लिए काला दिन है"... माना कि और भी बहुत लोकतान्त्रिक तरीके हैं विरोध के.... बड़े भाई, आज जब हर चीज़ को आंकने के पैमाने बदल गए हों। तो गाँधी जी के ज़माने का लोकतान्त्रिक तरीका कितना कारगर होगा ??? प्रत्यक्ष्म किम् प्रमाणम्.. क्या इरोम शर्मिला को न्याय मिल गया? और घटिया उदहारण दूं ..
देश भर को "गांधीगिरी" का पाठ पढ़ने वाला हमारा आपका, मीडिया का दुलारा "मुन्ना
भाई" रंगे सियार की तरह अपनी हकीकत खोल चुका है, नेताओं की हुआं-हुआं
सुनी नहीं कि जाग गया अन्दर का संजय दत्त। इकबालिया बयान देने वाला कह रहा है कि,
"कांग्रेस ने फंसवाया था." जिस बाप को ज़िन्दगी भर शर्मसार करते रहे अब उसकी मौत को राजनीतिक रंग दे रहे हैं... वाह रे वाह गाँधीगिरी और वाह रे वाह मेरे मुन्ना...
मुद्दों से तो हमेशा बचते रहे नेताजी लोग, जूते से भी बच गए लेकिन जूते ने मुद्दा दुबारा सुरसा के खुले मुंह की तरह राजनीतिज्ञों के सामने रख दिया है, बच सको तो बच लो...

खबरों का शीर्षक शायद सबसे उपयुक्त होता ... "जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत"

झूठे वादे दो ... जूते लो

जब किसी जख्म का इलाज़ ढंग से ना हो तो, तो सड़ेगा ही न,व्यवसायिक तौर तरीके जरनैल सिंह को क्यों सिखाने में क्यों जुट गए हैं लोग बाग़? क्या इस देश की कानून व्यवस्था को चलाने वाली सरकार वाकई में अपना काम इमानदारी से कर रही है? कम से कम जरनैल सिंह दलाली करने वाले नेताओं और पत्रकारों से तो लाख गुना बेहतर हैं। नेताओं और सरकार को करारा जवाब है, कलम खरीद सकते हो पर जूते नहीं रोक पाओगे ...

विडम्बना है, कि हाथ उठाने वाले कि हरकत हर कोई देखता है, मुह चिढ़ाने वाले कि हरकत किसी को नज़र नहीं आती। चिदंबरम साहब तो केवल उस भ्रष्ट व्यवस्था के अक्स मात्र है, जिसके ऊपर जूता चला है। जिस व्यवस्था पर जूता चला है वह इस के ही काबिल है, बस व्यक्ति गलत सामने पड़ गया।

चिदंबरम साहब एक व्यक्ति के रूप में ईमानदार और एक काबिल कार्यकारी हो सकते हैं... लेकिन जब गवंई मनई लट्ठ लेकर डकैतों को दौड़ाता है, तो ये नहीं देखता कि कौन सा डकैत कम खूंखार है...

चिदंबरम साहब ने जरनैल सिंह को माफ़ ज़रूर कर दिया होगा पर राजनीतिज्ञों को समझ लेना होगा, कि अब जनता भ्रष्ट और नकारे नुमाइंदो को इतनी आसानी से माफ़ नहीं करने वाली...

Wednesday, March 4, 2009

ऐसे ब्यूरो चीफ को क्या कहेंगे- पत्रकार या बदमाश?

भड़ास4मीडिया.कॉम पर प्रकाशित मेरा लेख
courtsey: www.bhadas4media.com

13 फरवरी का दिन लखनऊ के बहुत से पत्रकार याद रखेंगे, क्योंकि उसी दिन सी.बी.आई. कोर्ट मे माफिया सरगना बबलू श्रीवास्तव की पेशी के दौरान पुलिस और पत्रकारों के बीच झड़प हुई. पुलिस अधिकारियों के खिलाफ पूरी पत्रकार बिरादरी लामबंद हो गयी थी. इसी दौरान एक न्यूज चैनल के ब्यूरो चीफ कुछ और ही गुल खिला रहे थे. ये चैनल उस समूह का है जो पहले म्यूजिक कैसेट्स निकालता था फिर म्यूजिक और आध्यात्मिक चैनल शुरू हुआ और अब न्यूज चैनल. ब्यूरो चीफ महोदय निहायत ही लापरवाही और बेअंदाजी से गाड़ी चलाते हुए एक व्यापारी (जो कि कंप्यूटर पार्ट्स की दुकान चलाता है) की गाड़ी से भिड़ा बैठे. उसके बाद उन्होंने बाकायदा उस व्यापारी को धमकी देते हुए 2000 रुपये वसूले. इस दौरान उन्होंने अपने दबंग किस्म के साथियों को भी एकत्र कर रखा था.

ये लोग अपने मुखार बिन्दु से अविरल गाली रूपी आशीर्वचन देते जा रहे थे. इसी बीच व्यापारी के सम्बन्धी जो एक नामी चैनल में सीनियर प्रोड्यूसर हैं, उन्होंने भी पत्रकार बंधु को, दिल्ली से फोन पर समझाने की कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर रहा। उल्टा फोन डिसकनेक्ट करने के बाद व्यापारी को धमकी मिली कि अगर अब किसी मीडिया वाले से बात कराई तो नतीजा अच्छा न होगा. बाकायदा झूठे पुलिस केस मे फंसाने का आतंक भी दिखाया गया. अच्छा ही हुआ, कि दिल्ली से फोन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार घटनास्थल पर उपस्थित नही थे, वरना उन्हे भी जलालत का सामना करना पड़ता. यहां तो पेशेगत वरिष्ठता को भी ताक पर रख दिया गया था.

व्यापारी की गाड़ी (मारुती वैन) में जिस प्रकार से पिछले दरवाजे पर टक्कर लगी है (चित्र संलग्न है), उस से साफ जाहिर होता है कि पत्रकार महोदय ही लापरवाही से गाड़ी चला रहे थे. इसके बाद भी उन्होंने पूरी बेशर्मी दिखाते हुए, अपने तथाकथित पत्रकार साथियों (जो कि पत्रकार कम और अराजक तत्व ज्यादा नजर आ रहे थे) के साथ गुंडई का प्रदर्शन किया और व्यापारी से पैसा वसूला. बाद मे पता लगा कि व्यापारी से नए बंपर लगवाने के नाम पर पैसा वसूल कर जनाब ने वही पुराना बंपर अपनी गाड़ी मे लगवा लिया है.

अब ये चैनल का कसूर है कि वह अपने ब्यूरो चीफ को इतना कम पैसा देता है और उन्हे दिहाड़ी कमाने के लिए अपनी गाड़ी तक भिड़ानी पड़ती है या यह पत्रकार बंधु का अपना इजाद किया हुआ तरीका है, आर्थिक मंदी के दौर में इसका अंदाजा लगा पाना जरा मुश्किल है. इस पूरे घटनाक्रम में कष्टदायक स्थिति यह बनी कि समाज के हर तबके के लोग जो मीडिया और पत्रकारों की तरफ इस उम्मीद से देखते हैं कि यह बिरादरी सहमी और सीली हुई ज़ुबानों की आवाज है, उसी समाज के एक व्यक्ति को उसके रहनुमा ने धमका कर ना केवल शांत किया बल्कि पैसे भी निकालने को मजबूर किया. मीडिया को को कोई चौथा स्तंभ बुलाता है तो कोई सोसाइटी का 'वॉचडॉग' ('स्लॅमडॉग मिलियनेर' के बाद तो शब्द का दूसरा हिस्सा किसी को बुरा नही लगेगा), कई मामलों मे अगर मीडिया सतर्क और जागरूक ना होता तो सत्य का ना केवल गला घुटता बल्कि अन्याय भी अपनी चरम सीमा पर होता. लेकिन सवाल यह है कि इस गला काट प्रतियोगिता के चलन मे क्या हमारे पत्रकार बंधु भी मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देंगे?

इस देश में सिविल वॉर की स्थिति भले ना दिखती हो पर लोकतन्त्र के हर स्तंभ के भ्रष्ट, संवेदनहीन और खोखला होने से सड़कों पर ‘डॉगफाइट’ की स्थिति जरूर बनती दिखाई देती है.

Sunday, February 22, 2009

मतिभ्रम की पाठशाला- ... कामेडी कमाल की

पेश है ... मतिभ्रम की पाठशाला- पार्ट २... कामेडी कमाल की. चैनल बदलते रहिये .. या तो कॉमेडी का आतंक है या आतंक के नाम पर नेताओं और चैनल्स की कॉमेडी है ...


जय हो ... इक श्रद्धांजलि गरीबी को....

श्रद्धांजलि गरीबी को ... बधाइयाँ सरकार को ... गरीबी का पता नही गरीब तो हट ही गया ... ये वो बस्ती है जिसकी हस्ती सरकार ने गोमती के सौन्दर्यीकरण के नाम कुर्बान कर दी .. यहाँ बच्चे गाते थे "भारत प्यारा देश हमारा.... " उन्हें मालूम नही कि उनके माँ बाप को हिन्दुस्तानी होते हुए भी बांग्लादेशी साबित कर दिया गया है ...... नही मालूम कि उन्ही के जैसे बच्चों पर बनी फ़िल्म दुनिया में नाम के साथ करोड़ों कमा रही है... ऐ आर रहमान का गीत उनके जैसे ही लोगो की जय जयकार कर रहा है ... "जय हो ...."


Saturday, February 21, 2009

विज्ञापन की पाठशाला ... मतिभ्रम की पाठशाला

मीडिया (सभी माध्यम) में गला काट प्रतियोगिता और विज्ञापन लेने की होड़, कभी-कभी ऐसी हास्यास्पद या शर्मनाक स्थिति बना देती है जो सिर्फ़ हमे आपको माथा पीटने पर मजबूर कर देती है... ऐसा ही एक उदहारण यहाँ भी है, नीचे तस्वीर पर नज़र डालें और सोचें किस इस तरह ख़बर परोसने के मायने क्या हो सकते हैं. क्या अपराधी को अपराध करने से पहले यह गुरु ज्ञान पढ़ना चाहिए था... या यह अपराध करने और उस से बचने का नायाब तरीका बताया जा रहा है ???








Friday, February 20, 2009

दलित हितैषी सरकार ने दलितों-गरीबों को बेघर किया

दलित हितैषी सरकार ने दलितों-गरीबों को बेघर कियानदवा झोपड़-पट्टी को प्रशासन के बुलडोज़रों ने तोड़ गिराया आज बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा के इशारे पर स्थानीय प्रशासन ने लखनऊ के डालीगंज छेत्र में नदवा झोपड़-पट्टी को बुलडोज़रों से तोड़ गिराया। २५० से भी अधिक लोग बेघर हो गए। यह घटना प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती के दावे पर सवाल खड़े कर देती है जो मायावती ने अपने जन्मदिन पर किया था - कि उत्तर प्रदेश के हर गरीब को घर मिलेगा. जब वरिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता एवं रैमन मैग्सेसे पुरुस्कार से सम्मानित डॉ संदीप पाण्डेय नदवा झोपड़-पट्टी की और जा रहे थे तब पुलिस ने उनको जबरन हिरासत में ले लिए और नदवा जाने से रोका, और हसनगंज पुलिस थाने में रोक कर रखा.

'बेसिक सर्विसेस फॉर उर्बन पुअर' या BSUP के तहत जो मकान गरीबों को मिलने वाले थे, उनको पाने के लिए इस झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोग पैसा इकठ्ठा कर रहे थे। इससे पहले कि BSUP वाले घर बन कर तैयार हों, प्रशासन ने इनको बर्बरतापूर्वक बेघर कर दिया। इस नदवा झोपड़-पट्टी में अधिकाँश लोग जो रहते हैं वोह दलित हैं.

जब दोपहर में डॉ संदीप पाण्डेय को हसनगंज पुलिस थाने से बहार जाने की अनुमति मिली, तब तक नदवा झोपड़-पट्टी को बुलडोज़रों ने पूरी तरह से तोड़ दिया था। जो २५० लोग बेघर हुए थे उन्होंने विधान सभा के सामने धरना देने के लिए प्रस्थान कर दिया कि उनको वैकल्पिक रहने की जगह मिले जबतक BSUP वाले मकान बन कर तैयार नहीं हो जाते.

रास्ते में ही इन विस्थापित लोगों में से एक महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। अपर जिला मजिस्ट्रेट ओ.पी.पाठक ने समय से एंबुलेंस बुला कर इस महिला को जिला अस्पताल में भिजवाया जिससे इसको उपयुक्त चिकित्सकिये सहायता मिल सके।लखनऊ के नागरिक, तमाम सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने और जो २५० से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, उन्होंने प्रदेश सरकार से वैकल्पिक रहने के स्थान के लिए मांग की है, और जल्द-से-जल्द BSUP वाले मकानों को पूरा बनाने के लिए और इन लोगों को आवंटित करने के लिए भी मांग की है.

साभार: http://hindi-cns.blogspot.com/2009/02/blog-post_19.html

Monday, February 9, 2009

कबूतरबाज़ी या स्वादिष्ट चॉकलेट बनाने का नया नुस्खा ????

अभी तक हम यही जानते थे कि विदेशी कंपनियां गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखती हैं... लेकिन ब्रिटेन के डेली मेल के हवाले से मिली ख़बर पर यकीन करें तो मार्स मार्स, ट्विक्स, स्निक्केर्स, गैलेक्सी / M&Ms/ स्कित्त्लेस / M ilky Ways/ Bounty/ Celebrations/ Maltesers/ Minstrels/ Revels/Topics...चॉकलेट बनाने वाली कंपनी के ट्रक से गैरकानूनी प्रवासी बरामद और गिरफ्तार किए गए.
इस ट्रक से चॉकलेट बनाने वाला पाउडर सप्लाई होता था. अंदाजा लगा सकते हैं कि इस पाउडर में छिपे ये अवैध अप्रवासी कितने दिनों तक छिपे होंगे और क्या क्या इस चॉकलेट के पाउडर में मिश्रित किया होगा?
The illegal immigrants headed for Mars: Chocolate-covered stowaways discovered en route to factory
By Danny Brierley Last updated at 1:55 AM on 05th February 2009






Fifteen illegal immigrants were arrested yesterday after they were found hiding in a lorry filled with around 20 tons of cocoa powder. The stowaways had climbed into the tanker as it left Amsterdam on its way to a Mars factory in Slough.

The tanker carrying 20 tonnes of chocolate powder in which 15 stowaways were found hiding when it arrived at the Mars factory in Slough, todayBut police were alerted after the driver of the 37-ton vehicle prepared to unload his cargo.

A factory worker, who asked not to be named, said: 'Soon after the tanker arrived at the factory, the driver got on top of it to open up the hatches on the roof.
'When the driver looked down through the hatches into the tank, he apparently saw lots of men in brown coloured clothes --all saturated with the powder.

'Goodness knows how they managed to breathe because the powder is very fine and would have been in the air. The tanker was about half full of chocolate powder - the usual maximum load, so there would have been room for 15 men to ride on top of it.'

The men were found coated in 20 tonnes of cocoa powder destined for a Mars Bar factory He joked: 'Clearly the group of stowaways were in search of the sweet life - and they took the phrase quite literally when they boarded the truck.' The immigrants are believed to be aged between 20 and 40 and of Middle Eastern origin.

Paramedics were called to the plant but none of the men needed treatment. A police spokesman confirmed all were unhurt but were coughing and spluttering from the powder as they were put into waiting police vans at the Slough Trading Estate.
The Hungarian driver was also arrested, but it was not clear if he had been aware of his illegal cargo.

The stowaways were due to be interviewed by immigration service officials last night.
Staff at the Mars factory --where Mars Bars, Snickers, Twix and M&Ms are produced --declined to comment on the incident.

आइन्दा जब आप इस ब्रांड की चॉकलेट खाएं तो इस ख़बर को ज़रूर याद कर लीजियेगा .... ओरिजनल ख़बर पढने के लिए डेली मेल की वेबसाइट का लिंक यह है

http://www.dailymail.co.uk/news/article-1135766/The-illegal-immigrants-headed-Mars-Chocolate-covered-stowaways-discovered-en-route-factory.html

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Monday, February 2, 2009

सेकुलर चीर का हरण....दुःशाशन कौन?

एनडीटीवी ने एक कार्यक्रम दिखाया सपा के 'सेकुलर सिंह'.... अगर कहूँ कि एक अच्छा प्रयास था तो, चाटुकारिता होगी. इस देश की विडम्बना ही रही है कि यहाँ सेकुलरिज्म हमेशा से ही लंगडा, काना और बहरा रहा है. किसी भी सेकुलर सम्मलेन में चले जाएँ अगर हिंदू बहुतायत में हुए तो सम्मलेन के अंत तक मुसलमानों को बाबर और औरंगजेब कि संतान साबित कर दिया जाएगा और अगर इसका उल्टा हुआ तो समझ लीजिये वो सम्मलेन किसी रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़ी "मौलाना एक्सप्रेस" ही होगी.

तो मै बात कर रहा था सपा के 'सेकुलर सिंह' कार्यक्रम की जनाब एंकर महोदय नामी गिरामी चहरे हैं काव्यात्मक लहजे में कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं, और जिनकी रिपोर्ट दिखाई गई, वे वरिष्ठ सवांददाता हैं और खालिश शायराना अंदाज़ में खबरें पहुंचाते हैं. दोनों की ही खबरें पहुंचाने की अदा के दर्शक कायल हैं. ये दोनो ही व्यक्ति सेकुलरिज्म के नाम पर हो रहे राजनितिक खेल की बात कर रहे थे, कार्यक्रम के पीछे मंशा अच्छी थी पर ये दोनों अपने मानसिकता से मात खा गए. दोनों ही राजनीतिज्ञों की तरह अलग अलग ध्रुवों पर नज़र आए.

न विश्वास आए तो एक बार पुनः वह कार्यक्रम देखियेगा और पाइयेगा की काव्यात्मक लहजे वाला एंकर उसे 'विवादित ढांचा' कह रहा था और शायर संवाददाता उसे 'मस्जिद' बुला रहा था. बात बहुत छोटी सी है , लेकिन सवाल बहुत बड़ा है. जब हम ख़ुद आपस में सहमत न हों तो दुनिया के सामने दिखावा क्यों? आप कहेंगे अगर दोनों ने अलग अलग कह दिया तो क्या बुरा किया.... बिल्कुल वाजिब है आपका सवाल... लेकिन ६ दिसम्बर १९९२ को जो कुछ हुआ उसके पीछे भी तो यही विवाद था कि वह मन्दिर है या मस्जिद है या सेकुलर तौर पर कहें तो "विवादित ढांचा"....? बेहतर होता कि अगर खबरों में वह घटना .... बम कांडों की तरह सिर्फ़ 'अयोध्या काण्ड' या फ़िर '६ दिसम्बर' या ६/१२ के नाम से बुलाई जाए क्योंकि अंको कि कोई जाति या धर्म नही होता है...

क्या पत्रकारों और राजनीतिज्ञों में कोई फर्क नही रह गया या अभी से राज्य सभा नज़र आने लगी ... जनता यहाँ चैनल पर भी हीरे की चमक की आड़ में बेवकूफ बनेगी और वहां संसद में भी धृतराष्ट्रों के बीच उसी की सेकुलर साडी खींची जायेगी....

Sunday, January 18, 2009

शान्ति एवं सदभावना पर राष्ट्रीय अधिवेशन

शान्ति एवं सदभावना पर राष्ट्रीय अधिवेशन
NATIONAL CONVENTION ON COMMUNAL HARMONY

तिथि: ३० - ३१ जनवरी २००९
स्थान: कबीर मठ, जीयनपुर, अयोध्या, जिला फैजाबाद, उ.प्र.l


३० जनवरी २००९
सत्र १: १०:३० - १ बजे दोपहर
सदभावना के लिए चुनौती

सत्र २: २:३० - ४:३० बजे शाम
विभिन्न राज्यों से रपट

६ बजे शाम से शान्ति एवं सदभावना पर संगीत (स्थान: गाँधी प्रतिमा, सरयू नदी के तट पर राम की पैढी)

३१ जनवरी २००९

सत्र ३: ९:३० बजे सुबह से १ बजे दोपहर
नीति, सुझाव और भविष्य के लिए योजना

सत्र ४: २:३० - ४:३० बजे दोपहर
राजनीति एवं साम्प्रदायिकता

आयोजक समिति: जुगल किशोर शास्त्री, फैसल खान, अरविन्द मूर्ति, इरफान अहमद

संपर्क: फैसल खान, ०९३१३१०६७४५, ०९९६८८२८२३०, जुगल किशोर शास्त्री, ०९४५१७३०२६९, कबीर मठ, ०९४१५४०४४७१

रेलवे स्टेशन: अयोध्या, फैजाबाद

आयोजक:
अयोध्या की आवाज़, आशा परिवार, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपुल’स मोवेमेंट्स), अनहद, आल इंडिया सेकुलर फॉरम, कोम्मुनालिस्म कोम्बाट