Wednesday, March 4, 2009

ऐसे ब्यूरो चीफ को क्या कहेंगे- पत्रकार या बदमाश?

भड़ास4मीडिया.कॉम पर प्रकाशित मेरा लेख
courtsey: www.bhadas4media.com

13 फरवरी का दिन लखनऊ के बहुत से पत्रकार याद रखेंगे, क्योंकि उसी दिन सी.बी.आई. कोर्ट मे माफिया सरगना बबलू श्रीवास्तव की पेशी के दौरान पुलिस और पत्रकारों के बीच झड़प हुई. पुलिस अधिकारियों के खिलाफ पूरी पत्रकार बिरादरी लामबंद हो गयी थी. इसी दौरान एक न्यूज चैनल के ब्यूरो चीफ कुछ और ही गुल खिला रहे थे. ये चैनल उस समूह का है जो पहले म्यूजिक कैसेट्स निकालता था फिर म्यूजिक और आध्यात्मिक चैनल शुरू हुआ और अब न्यूज चैनल. ब्यूरो चीफ महोदय निहायत ही लापरवाही और बेअंदाजी से गाड़ी चलाते हुए एक व्यापारी (जो कि कंप्यूटर पार्ट्स की दुकान चलाता है) की गाड़ी से भिड़ा बैठे. उसके बाद उन्होंने बाकायदा उस व्यापारी को धमकी देते हुए 2000 रुपये वसूले. इस दौरान उन्होंने अपने दबंग किस्म के साथियों को भी एकत्र कर रखा था.

ये लोग अपने मुखार बिन्दु से अविरल गाली रूपी आशीर्वचन देते जा रहे थे. इसी बीच व्यापारी के सम्बन्धी जो एक नामी चैनल में सीनियर प्रोड्यूसर हैं, उन्होंने भी पत्रकार बंधु को, दिल्ली से फोन पर समझाने की कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर रहा। उल्टा फोन डिसकनेक्ट करने के बाद व्यापारी को धमकी मिली कि अगर अब किसी मीडिया वाले से बात कराई तो नतीजा अच्छा न होगा. बाकायदा झूठे पुलिस केस मे फंसाने का आतंक भी दिखाया गया. अच्छा ही हुआ, कि दिल्ली से फोन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार घटनास्थल पर उपस्थित नही थे, वरना उन्हे भी जलालत का सामना करना पड़ता. यहां तो पेशेगत वरिष्ठता को भी ताक पर रख दिया गया था.

व्यापारी की गाड़ी (मारुती वैन) में जिस प्रकार से पिछले दरवाजे पर टक्कर लगी है (चित्र संलग्न है), उस से साफ जाहिर होता है कि पत्रकार महोदय ही लापरवाही से गाड़ी चला रहे थे. इसके बाद भी उन्होंने पूरी बेशर्मी दिखाते हुए, अपने तथाकथित पत्रकार साथियों (जो कि पत्रकार कम और अराजक तत्व ज्यादा नजर आ रहे थे) के साथ गुंडई का प्रदर्शन किया और व्यापारी से पैसा वसूला. बाद मे पता लगा कि व्यापारी से नए बंपर लगवाने के नाम पर पैसा वसूल कर जनाब ने वही पुराना बंपर अपनी गाड़ी मे लगवा लिया है.

अब ये चैनल का कसूर है कि वह अपने ब्यूरो चीफ को इतना कम पैसा देता है और उन्हे दिहाड़ी कमाने के लिए अपनी गाड़ी तक भिड़ानी पड़ती है या यह पत्रकार बंधु का अपना इजाद किया हुआ तरीका है, आर्थिक मंदी के दौर में इसका अंदाजा लगा पाना जरा मुश्किल है. इस पूरे घटनाक्रम में कष्टदायक स्थिति यह बनी कि समाज के हर तबके के लोग जो मीडिया और पत्रकारों की तरफ इस उम्मीद से देखते हैं कि यह बिरादरी सहमी और सीली हुई ज़ुबानों की आवाज है, उसी समाज के एक व्यक्ति को उसके रहनुमा ने धमका कर ना केवल शांत किया बल्कि पैसे भी निकालने को मजबूर किया. मीडिया को को कोई चौथा स्तंभ बुलाता है तो कोई सोसाइटी का 'वॉचडॉग' ('स्लॅमडॉग मिलियनेर' के बाद तो शब्द का दूसरा हिस्सा किसी को बुरा नही लगेगा), कई मामलों मे अगर मीडिया सतर्क और जागरूक ना होता तो सत्य का ना केवल गला घुटता बल्कि अन्याय भी अपनी चरम सीमा पर होता. लेकिन सवाल यह है कि इस गला काट प्रतियोगिता के चलन मे क्या हमारे पत्रकार बंधु भी मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देंगे?

इस देश में सिविल वॉर की स्थिति भले ना दिखती हो पर लोकतन्त्र के हर स्तंभ के भ्रष्ट, संवेदनहीन और खोखला होने से सड़कों पर ‘डॉगफाइट’ की स्थिति जरूर बनती दिखाई देती है.