Wednesday, August 22, 2012

यह यूपी पुलिस है या बैंड-बाजे वाले



-जिन्हें पैसे नहीं मिले, वे दौड़ प्उ़े विधायक जी की गाड़ी के पीछे
- सरकार ने नहीं लिय विधायक के खिलाफ कोई एक्शन, 3 पुलिसवाले सस्पेंड 
लखनऊ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव भले कितने दावे कर लें कि प्रदेश में कानून व्यवस्था सुधर जाएगी, लेकिन हालात बिलकुल इसके उलट हैं। कभी अधिकारी तो कभी सत्ताधारी पार्टी सपा के विधायक और मंत्री कोई न कोई ऐसा आचरण कर बैठते हैं जिसके चलते सपा सरकार की छवि धूतिल हो चुकी है। ताजा मामला भदोही से विधायक विजय मिश्रा का है। सोमवार  को नैनी जेल से बाहर आते समय विजय मिश्राा की बेटी ने जेल के बाहर मौजूद पुलिसवालों को पैसे बांटे। पैसे लेने के लिए पुलिसवालों में होड़ मची हुई थी और वे आपस में धक्कामुक्की कर रहे थे। लेकिन यह सारा कृत्य कैमरे पर कैद हो गया और जनता को उनका असली चेहरा दिख गया। 

सोमवार को नैनी जेल के बाहर एक बार फिर यूपी पुलिस का घिनौना चेहरा देखने को मिला। इससे साफ हो गया कि यूपी पुलिस न केवल पैसे के पीछे पागल है बल्कि खैरात में मिलने वाले पैसे के लिए किसी भी हद तक जा सकी है। समाजवादी पार्टी के बाहुबली विधायक विजय मिश्रा सोमवार को इलाहाबाद के नैनी सेंट्रल जेल से रिहा हुए। उनकी रिहाई के समय सैकड़ों की संख्या में उनके समर्थक उनके आगवानी में लग गये। डेढ़ साल बाद जेल से बाहर आने के बाद विजय मिश्रा का परिवार इतना खुश हुआ कि उन्होंने जेल के बाहर इस तरह से पैसे लुटाना शुरु कर दिया जैसे कि शादी ब्याह में बैड-बाजे और नाचने वालों को पैसे दिए जाते हैं। लेकिन यह पैसे लेने वाले न तो नाचने-गाने वाले थे और न ही बैंडबाजे वाले। यह पैसा लेने की होड़ में लगे थे यूपी पुलिस के कांस्टेबल। पिता की जेल से रिहाइ्र से खुश विजय मिश्रा की बेटी सीमा मिश्रा तो इतनी खुश हुईं कि पुलिसकर्मियों को बख्शीश देने से भी नहीं चूकीं। जेल के बाहर ड्यूटी पर तैनात एक पुलिसकर्मी ने जैसे ही विजय मिश्रा को सलाम किया उनकी बेटी ने उसके हाथ में 500 का नोट थमा दिया। नोट हाथ में आते ही पुलिसकर्मी वहां से चला गया। इसके बाद तो वहां पैसा लेने के लिए पुलिसवालों में होड़ मच गई। एक न्यूज चैनल पर दिखाये गये वीडियो के मुताबिक बाहुबली विधायक विजय मिश्रा की बेटी पुलिसवालों को पांच पांच सौ रुपये के नोट बख्शीश के तौर पर दे रही हैं। यही नहीं जिन पुलिसवालों को पैसे नहीं मिले वह बारात के पीछे भाग रहे बच्चों की तरह नोट लेने के लिए विजय मिश्रा की उसयूवी के गाड़ी के पीछे-पीछे दौड़ पड़े।

इस तरह पुलिसवालों को नेग की रकम लेने के लिए पागल होते देख, इस बात का अंदाजा तो हो ही जाता है कि वो जेल में भी नेताजी की सुख-सुविधा का कितना ख्याल रखते होंगे। उल्लेख्नीय है कि सपा विधायक विजय मिश्रा पर 60 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। पिछले डेढ़ साल से मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नंद गोपाल गुप्ता नंदी पर जुलाई 2010 में हुए हमले के मामल में जेल में बंद थे। इससे पहले विजय मिश्राा उस व्व्त विवादों में आए थे जब वह राष्टï्रपति चुनाव प्रचार के लिए लखनऊ आए वर्तमान राष्टï्रपति के सम्मान में दिए गऐ भेज में नजर आए थे। यह भोज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिया था और उस वक्त जेल में निरूद्ध विजय मिश्राा कानून की धज्जियां उड़ाते हुए मुख्तार अंसारी के साथ मुख्यमंत्री आवास पर नजर आए थे। 

कहा जाता है कि घूस लेने वाला जितना बड़ा अपराधी होता है, उससे बड़ा घूस देने वाला। लेकिन अखिलेश यादव की सरकार ने विजय मिश्राा या उनकी बेटी के खिालाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय 500 रूपए की नोट लेने वाले 3 पुलिसवालों को सस्पेंड करके अपने कत्र्वयों की इतिश्री कर ली है। 

Reported by Anurag Tiwari for www.voiceofmovement.in 

Saturday, July 14, 2012

यह खबर नहीं, हैवानियत की इंतहा है

- बीच सड़क पर किशोरी की इज्जत तार-तार हुई
- मीडिया में आने के बाद जागी पुलिस
गुवाहाटी।  अगर थोड़ी बहुत भी इंसानियत शेष है तो कानून के रखवालों को शर्म से डूब मरना चाहिए। गुवाहटी की घटना उस पाश्विक सोच का आइना है जिसपर हमने तथाकथित सभ्यता का लबादा डाल रख है। इसे विडम्बना कहें या शर्म से गड़ जाने वाली घटना कि जिस संसदीय क्षेत्र का मतदाता प्रधानमंत्री हो और जिस राज्य से प्रधानमंत्री चुनकर राज्य सभा में प्रतिनिधित्व करता हा,े वहां की राजधानी की सड़कों पर 20-20 दु:शासन एक किशोरी का चीर हरण करते रहे। आधे घंटे तक सड़क पर हैवानियत का नंगा नाच चलता रहा और राहगुजर इसे सड़क पर हो रहा तमाशा समझ आगे बढ़ते रहेे। कहने को असम साक्षरता में  देश के कई राज्यों से कहीं आगे समझा जाता है।

सोमवार की रात कक्षा 11 में पढंने वाली 17 साल की लड़की एक बर्थडे पार्टी से लौट रही थी अभी वह पब से निकली ही थी कि उसे 20 दरिंदो ने सड़क पर ही घेर लिया। इसके बाद जो हैवानियत का नंगा नाच शुरू हुआ वह पुरूष को जन्म देने वाली किसी भी मां के कोख को शर्मशर कर देने वाली थी। दरिंदे उसे नोचते खसोटते रहे, उसके कपड़े तार-तार करते रहे। इतने पर भी मन नहीं माना तो उसके संवेदनश्ील अंगों पर चोट करते रहे। लड़की मिन्नते करती रही जाने देने की गुहार लगाती रही, लेकिन शैतानों का दिल नहीं पसीजा। लड़की ने कई बार दरिंदों से मिन्नत कि मुझे जाने दो...घर पर तुम्हारी भी बहने है, लेकिन लड़की के बार-बार घर जाने की मिन्नतें करने पर भी किसी ने उसकी मदद नहीं की।

हद तो यह थी सारी घटना कैमरे में कैद हो रही थी और दरिंदे अपने चेहरे पर घिनौनी हंसी लिये कैमरे की तरफ देखते रहे। जो जाानकारी मिली है उसके अनुसार पीडि़त लड़की अपने एक दोस्त के साथ दस जुलाई को गुवाहाटी-शिलांग रोड पर स्थित एक बार में गई थी। इस दौरान अपने दोस्तों से उसका किसी बात पर मनमुटाव हो गया। जिसके बाद मौके की ताड़ में बैठे इंसीनी भेडिय़ेां के एक समूह ने इस वाकये का फायदा उठाकर उस लड़की के साथ सरेआम छेडख़ानी और मारपीट की।

टीवी चैनल्स पर घटना के वीडियो और समचार दिखाए जाने के बाद असम पुलिस ने आनन-फानन में चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। असम के डीजीपी ने बताया कि इस वारदात में शामिल 11 आरोपियों की पहचान कर ली गई है और इनमें से चार को गिरफ्तार कर लिया गया है। बाकी आरोपी अभी फरार हैं। गिरफ्तार आरोपियों में से एक असम सरकार के सरकारी उपक्रम असम इलेक्ट्रानिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का कर्मचारी है और इसका नाम अमर ज्योति कलिता है। कलिता ने असमी धारावाहिक में भी काम किया है।  वहीं असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने कहा कि इस तरह की सरेआम छेडख़ानी की घटना किसी स्तर पर स्वीकार्य नहीं है और समुचित कार्रवाई की जाएगी। पीडि़त लड़की की मां की शिकायत के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है और कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।                                    

असम में किसी महिला के साथ इस तरह सरे-आम बेइज्जत करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ दिन पहले ही असम की एक महिला विधायक को होटल में घुसकर बहशी भीड़ ने बरी तरह से पीटा। लगभग छ: वर्ष पहले भी गुवाहटी में खुली सड़क पर आदिवासी महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान भीड़ ने एक महिला को चपेट में ले लिया था। कुछ स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने एक महिला को सरेआम पीटना शुरू कर दिया। उसके कपड़े फाड़ दिए गए। उसे नंगा कर उसके गुप्तांग पर प्रहार करते नजर आए थे। मुंबई और गुडग़ांव में नये साल के जश्र के दौरना भी वहशियों की भीड़ ने इसी तरह की हरकत की थी।  लगभग डेढ़ साल पहले 31 दिसंबर 2011 की रात गुडग़ांव के होटल में नए साल के स्वागत की तैयारी जोरों पर चल रही थी। शराब और शबाब की मस्ती में डूबे हुए लोग बहके जा रहे थे। उसी समय कई लोग सड़क किनारे एक कपल को घेर कर बुरी तरह छेडऩे लगे। आने-जाने वाले मूकदर्शक बने रहे। नए साल की वजह से पुलिस की गश्त तेज थी। लड़की की किस्मत अच्छी थी कि वहां पुलिस आ गई और उसकी जान बची। ऐसी ही घटना नए साल के जश्न के दौरान मुंबई के जूहू बीच के पास हुई थी।

असम में हुई इस शर्मनाक घटना पर अपनी प्रतिक्रया देते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता शर्मा ने कहा कि उन्हें खुद इसकी जानकारी गुरुवार रात मिली है। ममता शर्मा ने असम सरकार से इस बारे में बात करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने  ऐसी शर्मनाक घटना को अंजाम देने वालों को उम्र कैद दिए जाने की वकालत की है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ने कहा कि यह घटना सोमवार की है लेकिन अब तक सभी आरोपी गिरफ्तार नहीं हुए। इसमें पुलिस की भी लापरवाही है। वह चाहती तो मौके से ही गिरफ्तार कर सकती थी।

Reported for Voice of Movement

आखिर किसे नंगा कर रहे हैं ये भेडि़ए?


- गुवाहटी के बाद अब छत्तीसगढ़ में सामने आई  युवती को निवस्त्र करने की घटना
-  गुजरात में रेप के बाद एमएमएस बनाया तो प. बंगाल में टीचर ने ही किया छात्रा को नंगा
-  बंगलुरू में पति बना हैवान, पत्नी को अपना मूत्र पिलाया
लखनऊ। पिछले 48 घंटों में जो भी खबरें आई हैं, उनसे तो यही जाहिर होता है कि स्त्री मात्र एक खिलौना है, उसे जब जैसे मन चाहे कोई भी नंगा कर सकता है। खेल सकता है और उसकी अस्मिता से खिलवाड़ कर सकता है। गुवाहटी के बाद अब परम्पराओं के धनी राज्य छत्तीसगढ़, गुजरात और पढ़े लिखे लोगों के शहर बंगलुरू की बारी थी। छत्तीसगढ़ में लड़की को नंगा करके उससे परेड कराई गई एमएमएस बनाया गया, गुजरात में छात्रा से रेप कर उसका एमएमएस बनाया गया, बंगलुरू में पत्नी की वफादारी पर शक हुआ तो उसे अपना मूत्र पिला दिया और बंगाल में एक शिक्षिका ने आठवीं की छात्रा के कपड़े पूरी क्लास के सामने उतरवा दिये।  इतनी वीभत्स घटनाएं सामने आने के बाद भी पुलिस का नाकारा रवैया जले पर नमक छिड़कने जैसा है। कहीं पुलिस मामले को दबाने में लगी है तो कहीं उसे शिकायत का इंतजार है। दरअसल गुवाहटी में हुई हैवानियत के बाद वहां के डीजीपी का बयान काफी है, इस देश के पुलिस सिस्टम की नपुंसक मानसिकता को समझने के लिये। असम के डीजीपी अपने मातहतों की कमजोरी छिपाने के लिये कहते हैं कि पुलिस एटीएएम नहीं है जो बटन दबाते हाजिर हो जाए। सही कहा डीजीपी साहब ने, पुलिस तो बैंक का फिक्स्ड डिपॉजिट है, जिसकी मियाद पूरी होने पर आप एप्लीकेशन देंगे तभी आपके खाते में रकम पहुंचेगी।

छत्तीसगढ़ की पर्यटन नगरी रतनपुर में हथियारबंद दरिंदों ने एक प्रेमी युगल को पकड़कर, प्रेमिका के कपड़े उतरवा दिए और उससे नंगा होकर परेड करने पर मजबूर कर दिया। इतना ही नहीं इस कृत्य का मोबाइल से एमएमएस बनाकर उसे लोगों में बांट भी दिया। घटना लगभग पंद्रह दिन पुरानी है, लेकिन इसका एमएमएस आने के बाद पूरे इलाके में सनसनी फैल गई है। इस एमएमएस में  इसमें किशोर लड़की और चार लड़के दिखाई दे रहे हैं। एकएक कर ये दरिंदे युवती को कपड़े उतारने के लिए मजबूर कर रहे हैं। युवती के गिड़गिड़ाने और मिन्नतें करने के बाद दरिंदे अपने किए पर उतारू हैं। बताया जा रहा है कि पीडि़त युवती रतनपुर के एक नामी गिरामी परिवार की है। वहीं जिले के एसपी ने जहां सधा हुआ बयान दिया है कि क्लिप से पहचान कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी तो रतनपुर के टीआई ने मामले को टालने वाला बयान दिया है। टीआई का कहना है कि हमें घटना की शिकायत नहीं मिली है। वीडियो क्लिपिंग उपलब्ध होने पर दोषियों के खिलाफ  कार्रवाई की जाएगी।

दूसरी तरफ गजरात के अहमदाबाद शहर से हैवानियत की खबर है। अहमदाबाद शहर के एक कॉलेज की छात्रा के साथ से रेप का मामला सामने आया है। रेप करने वाला और कोई नहीं बल्कि उस छात्रा का पड़ोसी ही है। उसने रेप करने के बाद छात्रा का एमएमएस बनाया और उसे इंटरनेट पर डाल दिया। इतने से मन नहीं भरा तो सीडी भी बनाकर बांट दी। पीडिता के बयान के मुताबिक आरोपी युवक का उसके घर आना जाना था। युवक ने उससे कहा कि वह उससे प्यार करता है और शादी करना चाहता है। एक दिन युवक ने धोखे से ड्रिंक में नशे की दवाई पिलाकर बेहोश किया और रेप किया।

पश्चिम बंगाल के बारासात में तो हद हो गई, यहां एक महिला शिक्षक ने ही आठवीं कक्षा की छात्रा की अस्मिता की धज्जियां उड़ाते हुये उसे पूरी क्लास के सामने नंगा कर दिया।  लड़की के पिता पवित्र मंडल ने टीचर रूपाली के खिलाफ  पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी है। पिता ने शिकायत में कहा है कि उनकी बेटी पर क्लास की ही एक लड़की के पैसे चुराने का आरोप लगाया गया और तलाशी के नाम पर टीचर ने पूरी क्लास के सामने उनकी बेटी के कपड़े उतरवा दिए।

पढ़े-लिखे लोगों और आईटी के विद्वानों का शहर समझे जाने वाले बंगलुरू में एक पति ने अपनी पत्नी के ऊपर शक होने के चलते उसे अपना मूत्र पीने पर मजबूर कर दिया। विडम्बना यह कि यह कृत्य करने वाला व्यक्ति दांतों का डॉक्टर है। पीडि़ता ने पुलिस को दिए गए बयान में बताया है कि उसका पति कई दिनों से उसे काफी यातनाएं दे रहा है। सबे सामने उसे मुझे बेइज्जत करता थ। जब उसको माहवारी के दौरान पेट में दर्द था तो उसके पति ने उसके पेट पर लात मार दी और जबरदस्ती उसके साथ शरिरिक संबंध बनाए। इतने पर भी जब उसका मन नहीं माना तो उसे अपना मूत्र पिला दिया।

Reported for Voice of Movement

Wednesday, June 13, 2012

सरकारी आंकड़ों में उलझकर रह गई है संवेदना


-  इंसेफेलाइटिस क शिकार समाज का सबसे गरीब तबका जिसकी हुक्मरानों की नजर में कोई अहमियत नहीं
- पोलियो, टीबी और मलेरिया की तरह इंसेफलाइटिस के लिये कोई राष्ट्रीय  कार्यक्रम नहीं बन पाया।
-34 वर्षों में इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिये कोई ठोस रणनीति नहीं बनी।
- गोरखपुर और वाराणसी जैसे शहरों के अलावा पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं।
- उत्तर प्रदेश सरकार इंसेफेलाइटिस की रोकथाम करने के लिये हमेशा केन्द्र सरकार पर निर्भर।
- इंसेफेलाइटिस का कारगर इलाज ढूंढने में केन्द्र सरकार की योजनायें और राष्ट्रीय विषाणु अनुसंधान केन्द्र जैसी संस्थायें भी बुरी तरह से नाकाम



गोरखपुर/लखनऊ । यहां बीमारी से मर रहे मासूमों का इलाज नहीं होता बल्कि सरकारी आंकड़ों का सालाना जश्र मनता है। यहां मरने वाला हर बच्चा केवल एक आंकड़ा है, जो बढ़ गया तो राजनीति और घट गया तो अपनी पीठ थपथपाने का मौका। जी हां बात कर रहे है पूर्वाचल की जहां जैपनीज इंसेफेलाइटिस और एईएस से हर साल हजारों बच्चों की मौत हो जाती है। सूबे का सरकारी स्वास्थ्य महकमा केवल सलाना अंाकड़ों को सजोने में ही व्यस्त रहता है। इस बीमारी का सबसे अफसोसनाक पहलु यह है कि इसका कोई कारगर इलाज नहीं है। किसी बच्चे का इंसेफेलाइटिस का शिाकर होना और मौत से बच जाने का मतलब बाकी जिंदगी का मतलब केवल सांस भर लेना और जिंदा लाश बनकर रह जाना होता है।

पिछले 34 वर्षों में यह बीमारी लगभग 20 हजार से ज्यादा बच्चों की जान ले चुकी है। इस क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ की मानें तो यह आंकड़ा पिछले 34 वर्षों में 50 हजार का आंकड़ा पर कर चुका है। इस मौत से होन वाले आंकड़ों को पहली बार 1978 रिकार्ड किया गया था। उस वर्ष 1000 से ज्यादा बच्चें की मौत हुई थी। इसके बाद जब 2005 में बच्चों की मौतों की संख्या 1000 के पार पहुंची तो गोरखुपर से लेकर दिल्ली तक कोहराम मच गया। अकेले गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज के आंकड़ो की मानें तो इस साल की शुरूआत से अबतक 125 से ज्यादा बच्चे मौत के मुंह में जा चुके हैं। पिछले साल इंसेफेलाइटिस से मरने वाले बच्चों की संख्या 600 पार कर गई थी। यह तो वे आंकड़े हैं जो सरकार अपने यहां दर्ज करती है। बहुत से गरीब परिवार तो अपने बच्चों को अस्पताल तक नहीं ले जा पाते और उनके बच्चों की मौत सरकारी आंकड़ो में कोई जगह नहीं पाती। उल्लेखनीय है कि क इस बीमारी से पीडि़त होने वाले बच्चों में से लगभग 2 प्रतिशत ही शुरुआती स्थिति में मेडिकल कालेज तक पहुंच पाते हैं और बाकी गांव के डाक्टरों के भरोसे पर रहते है। मानसून शुरू होने को है और इंसेफेलाइटिस का दंश झेल चुके पूर्वांचल के गांव परिवार एक बार फिर सहम उठे हैं कि इस बार यह जापानी बुखार कितनों की बलि लेगा। यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि इंसेफेलाइटिस पूर्वांचल का शोक है। इंसेफेलाइटिस बुखार एक ऐसी डायन जिसे जेई, जापानी इंसेफेलाइटिस , मस्तिष्क ज्वर भोजपुरी में बड़की या नवकी बीमारी सहित न जाने कितने नामों से जाना जाता है। हालात यह हैं कि पूर्वांचल के लगभग सभी जिले इस बीमारी की जद में हैैं, लेकिन मरीजों को इलाज के लिये या तो गोरखपुर मेडिकल कॉलेज या वाराणसी बीएचयू में इलाज कराने जाना पड़ता है।

समस्या तब और गंभीर हो गई जब सरकार ने इंसेफेलाइटिस के नाम पर जैपनीज इंसेफेलाइटिस के टीककरण पर जोर दिया लेकिन एईएस की उपेक्षा कर दी। हालात यह हैं कि मौजूदा स्थिति में जेई पर तो लगभग पूरा नियंत्रण पाया जा चुका है लेकिन इनसेफालोपैथी सिंड्रोम (एईएस) के प्रकोप बढ़ता गया। इलाज के नाम पर सरकारी व्यवस्था का हाल यह है कि गोरखफर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में एक-एक बिस्तर पर तीन-तीन बच्चे इलाज के लिये पड़ रहते हैं। जिस जैपनीज इंसेफेलाइटिस को टीकाकरण के जरिये सरकार रोकने का दावा करती है, कायदे से उसके टीके कोल्ड चेन के जरिये सुरक्षित तरीके से संगहीत किये जाने चाहिये। लेकिन अगर गोरखुपर जिले का हाल देखें तो वहां किसी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर न तो कायदे से बिजली की व्यवस्था है और न ही जनरेटर हैं। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है संग्रहीत टीके बीमारी का प्रकोप शुरू होने के पहले ही बर्बाद हो चुके होते हैं।

हर साल सरकार की तरफ से वायदों का झुनझुना थमा दिया जाता है। इस बार के विधान सभा चुनावों में भी पूर्वांचल के वोटरों ने इंसेफेलाइटिस  को बड़ा मुद्दा बनाया था। हर बार की तरह यह वायदे और दावे राजनतिक पाटिंयों के घोषण पत्र तक ही सीमित रह गये। हालात यह है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अपनी पार्टी के गिरते प्रदर्शन की चिंता के चलते विधान सभा चुनावों के दौरान पूर्वांचल का 5 बार दौरा करना पड़ा। लेकिन चुनावों के बाद न तो केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इस इलाके की सुधि ली है और न ही राज्य सरकार ने। सूबे की राज्य सरकार पूर्वांचल के इस शोक का अंत करने के लिये किसी ठोस कदम की घोषण करने के बजाय पूर्ववर्ती मायावती सरकार की पत्थरों से बनी इमारतों और स्मारकों की गिनती में लगी हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब स्वास्थ्य विभाग घोटालों में डूब चुका हो और सरकार पत्थरों के मायाजाल में उलझी हो तो मासूमों को मौत के मुंह में ले जाने वाली इंसेफेलाइटिस से निजात कौन दिलायेगा?


Reported for Voice of Movement

Thursday, May 31, 2012

राजनीति और भ्रष्टïचार की भेट चढ़ गई रेल यात्रियों की सुरक्षा


- घटिया समाग्री के उपयोग से बढ़ी रेल दुर्घटनायें
- रेलमंत्री को दिल्ली के बजाय कोलकाता रहना ज्यादा पसंद
- रेल सुरक्षा से संबंधित फाइलें रेल मंत्रालय में लटकीं

लखनऊ। पहले साल दो साल में रेल दुर्घटना हो जाती थी तो हंगामा मच जाता था। लेकिन भ्रष्ट और संवेदहीन होती व्यवस्था के चलते अब हर महीने या पखवाड़े बड़ी रेल दुर्घटनायें हो रही हैं और मरने वालों के परिवारों का करूण क्रंदन नकारी व्यवस्था केे नक्कारखाने में तूती की तरह हो गई है। हालात यह हैं कि एनडीए के शासनकाल में रेलवे सुरक्षा के लिये बना फड खत्म हो चुका है और रेलवे के आर्थिक हालत बिगड़ी हुई है। अभी हम्पी और बुधवार को इंदौर-रतलाम में हुई दुर्घटनाओं से आम जनता उबरी नहीं थी कि गुरूवार को जौनपुर के पास दून एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने की मनहूस खबर आई। श्ुरूआती दौर में रेलवे ने ठीकरा एस्सिटेंट लोको पॉयलट पर ठीकरा फोड़ा कि उसने इमर्जेंसी ब्रेक लगाये थे। तो वहीं वहीं पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ने बिना जांच हुये ही इसे तोडफ़ोड़ के कारण हुई दुर्घटना बता दिया। एक के बाद एक हो रही रेल दुर्घटनाओं के कारण के पीछे राजनीतिक कारण प्रमुख हैं। गठबंधन में चल रही यूपीए सरकार में रेल मंत्रालय को लेकर घमासान मचा हुआ है। दिनेश त्रिवेदी के जबरदस्ती लिये गये इस्तीफे के बाद रेल मंत्री बने मुकुल रॉय का अधिकतर समय कोलकाता में गुजर रहा है। अगर रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो रेल मंत्री महीने में कम से कम 25 दिन कोलकाता प्रवास पर रहते हैं। इसके चलते रेलवे सुरक्षा से जुड़ी कई फाइलें रेल मंत्रालय में पड़ी रेल मंत्री के नजरे इनायत होने की बाट जोह रही हैं। पिछले कुछ सालों में ट्रेनों के पटरियों से उतरने और एक-दूसरे से टकरा जाने के हादसों में अचानक बढ़ोतरी हुई है। रेलवे की ही विजलेंस टीम ने जब इन हादसों की जांच की तो बहुत ही खौफनाक सच सामने आया। जांच में पाया गया कि रेल पटरियां, ट्रेन के पहियों को टिकाने वाला हैंगर पिन और ब्रेक ब्लॉक दोयम दर्जे की गुणवत्ता के थे। पूरे मामले में सबसे दुखद पहलू यह रहा कि ब्रेक ब्लॉक और हैंगर पिन टूटने की घटनाओं में बढ़ोतरी के बाद भी रेलवे बोर्ड ने इस दिशा में कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया है। ये ऐसे पुर्जे हैं कि अगर चलती ट्रेन में टूटे तो दुर्घटना को रोना नामुमकिन है। भ्रष्टïचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि देश भर की टे्रनों में बहुतायत में घटिया पुर्जे लग चुके हैं और उन्हें एक साथ बदलना लगभग नामुमकिन है। जुलाई 2011 में कालका हादसे के बाद बनी परमाणु वैज्ञानिक डॉ.अनिल काकोदकर की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर रेलवे ट्रैक खराब हो चुके हैं। लगभग हर ट्रेन के यात्री डिब्बे निहायत ही असुरक्षित हैं। बरसों पहले बने रेलवे पुल जर्जर हो चुके हैं। कुल मिलाकर काकोदर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सुरक्षा की जो तस्वीर बनाई थी वह निहायत ही भयावह है। रेलवे में पटरियों की देखभाल करने वाले गैंगमैन, गेटमैन और ट्रेन चलाने वाले ड्राइवरों के करीब 24 हजार पद खाली हैं। इस कमेटी ने साफ कहा था किअगले दो-तीन साल तक कोई भी नई ट्रेन चलाने या ट्रेनों में बोगियां बढ़ाये जाने के बजाय रेलवे को अपना पूरा ध्यान सुरक्षा में लगाना चहिये। पिछले दिनों ही खबर आई थी कि सुरक्षा के नाम पर लगभग 15000 करोड़ रूपया और दशकों का समय नष्टï करने के बाद रेलवे के अधिकरियों ने भी मान लिया था कि रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिये वे जिस आटामेटेड सिस्टम पर काम कर रहे थे, वह भारतीय रेल के लिये कारगर नहीं है। इससे पहले हुई हर बड़ी दुघटना के बाद जांच की घोषण के साथ साथ एक रस्मी घोषणा होती रही है कि रेलवे की सुरक्षा को और प्रभावी बनाया जायेगा। पिछले महीने ही वॉयस ऑफ मूवमेंट ने पूर्वोत्तर रेलवे में उपकरणों की खरीद में हो रही धांधली के बारे में बताया था। ऐसे ही 1998 में लुधियाना के पास खन्ना में हुई रेल दुर्घटना के बाद बनी खन्ना जांच कमेटी ने पाया था कि रेल हादसे का कारण था दोयम दर्जे कीे रेल पटरियों का उपयोग। रेलवे के एक अध्किारी ने बताया कि रेल की पटरियों में कई वजह से खामियां आ रही हैं उनमें से प्रमुख है गुणवत्ता को न कायम रख पाना। जितने भी हादसे हो रहे हैं वह या तो दिन में पीक आवर्स में हो रहे हैं या फिर देर रात। यह दोनों ही समय ऐसे हैं जब वातावरण में बदलते तापमान के कारण पटरियां अपना फैलती या सिकुड़ती हैं। अगर पटरियों की गुणवत्ता कायम रखी गई होती तो पटरियां वातावारण के तापमान से इस हद तक प्रभावित न होतीं और अपना स्वरूप कायम रखतीं। जौनपुर हादसे मे भी शुरूआती दौर में जो कारण निकलकर आ रहें हैं, उनके मुताबिक एसिस्टेंट लोको पायलट ने पटरी को टेढ़ा देखकर इमर्जेंसी ब्रेक लगा दिये जिसके चलते सात बोगियां पटरी से उतर गईं और 7 यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

Reported for Voice of Movement, Dated June 1, 2012