Saturday, February 21, 2009

विज्ञापन की पाठशाला ... मतिभ्रम की पाठशाला

मीडिया (सभी माध्यम) में गला काट प्रतियोगिता और विज्ञापन लेने की होड़, कभी-कभी ऐसी हास्यास्पद या शर्मनाक स्थिति बना देती है जो सिर्फ़ हमे आपको माथा पीटने पर मजबूर कर देती है... ऐसा ही एक उदहारण यहाँ भी है, नीचे तस्वीर पर नज़र डालें और सोचें किस इस तरह ख़बर परोसने के मायने क्या हो सकते हैं. क्या अपराधी को अपराध करने से पहले यह गुरु ज्ञान पढ़ना चाहिए था... या यह अपराध करने और उस से बचने का नायाब तरीका बताया जा रहा है ???








4 comments:

Udan Tashtari said...

गला काट प्रतियोगिता और विज्ञापन लेने की होड़ ही है सब तरफ.

रवीन्द्र प्रभात said...

विज्ञापन के नाम पर अब नैतिकता नीलाम हो रही है !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाकई में इसे मतिभ्रम की पाठशाला कहना ही बेहतर रहेगा.

रंजन (Ranjan) said...

न मंजिल का पता न रास्ते का..