अखिलेश कैबिनेट की बैठक में बुधवार को एक अहम फैसला लिया गया। इस फैसले के
अंतर्गत सीएम के वेतन में बढ़ोतरी की गई है। सीएम का वेतन अब 12 हजार रुपए
से बढ़कर 40 हजार रुपए प्रति महीना कर दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में जब से समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है, आरोप
लगते रहे हैं कि अखिलेश सिर्फ़ नाम के मुख्यमंत्री हैं, सरकार तो 'चचा' लोग
चला रहे हैं.
'चचा' यानी शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव.
लेकिन अब 'चचा' शिवपाल ही सरकार और पार्टी से इस क़दर नाराज़ हो गए हैं कि उन्हें इस्तीफ़े की धमकी देनी पड़ी है.
रविवार
को मैनपुरी में एक कार्यक्रम के दौरान बेहद भावुक अंदाज़ में उन्होंने कहा
कि पार्टी और सरकार में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है.
उन्होंने यहां तक कह दिया कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो इस्तीफ़ा दे देंगे.
धमकी
के अगले दिन जब पार्टी और परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव, बेटे अखिलेश
की बजाय शिवपाल के साथ खड़े दिखे तो राजनीतिक गलियारों में कई तरह के सवाल
उठने लगे.
पार्टी दफ़्तर में स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के
दौरान मुलायम सिंह ने भी धमकी दे दी कि अगर वो और शिवपाल अलग हो गए तो
सरकार के साथ पार्टी का कोई नहीं खड़ा मिलेगा. मुलायम सिंह यादव पार्टी दफ़्तर में जब ये बातें बोल रहे थे, उस समय कई मंत्रियों के अलावा सरकार के मुखिया अखिलेश भी मौजूद थे.
दरअसल
पार्टी में कई मोर्चे यानी ग्रुप होने की बातें अक्सर होती हैं, लेकिन
पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं से ये बातें जैसे प्रमाणित होने लगी हैं.
ख़ासकर
पार्टी में अमर सिंह की वापसी, राज्य सभा में टिकटों का बंटवारा, मुख्य
सचिव दीपक सिंघल की नियुक्ति जैसी घटनाएं इस संदर्भ में काफी अहम हैं.
आज शिवपाल यादव को इस्तीफ़े की धमकी भले ही देनी पड़ रही है, लेकिन इन घटनाओं के पीछे शिवपाल सिंह यादव का ही हाथ बताया गया.
इन्हें पार्टी में अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव की कमज़ोरी भी बताया गया.
वरिष्ठ
पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, "मुख्य सचिव से लेकर नौकरशाही के हर अहम पद
पर शिवपाल यादव और नेताजी की पसंद के अधिकारी बैठे हैं. बिना इनकी मर्ज़ी
के पार्टी या सरकार में पत्ता तक नहीं हिलता. ऐसी स्थिति में इन्हें ये सब
कहने की ज़रूरत कहां पड़ गई?"
हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि सार्वजनिक मंचों से सरकार की बुराई करना मुलायम सिंह की एक रणनीति हो सकती है. लेकिन शिवपाल यादव का भी इस आलोचना में मुखर हो जाना सीधे तौर पर मतभेदों को ही उजागर करता है.
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि शिवपाल और अखिलेश में मतभेद कोई नई बात नहीं है, हर कोई इसे जानता है.
लेकिन
अब शिवपाल सार्वजनिक मंच से इस तरह की बातें करके उस स्थिति से बचना चाहते
हैं कि अगर पार्टी हारे तो पूरा ठीकरा उनके माथे न फूटे, क्योंकि पार्टी
में ज़्यादातर फ़ैसलों के पीछे उन्हीं की स्वीकृति रहती है.
पार्टी
में मतभेद के मामले में पार्टी का कोई भी नेता सीधे तौर पर बोलने से कतरा
रहा है. लेकिन इस बात से पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता भी इनकार नहीं करते
कि कार्यकर्ता और नेता मनमानी कर रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के
वरिष्ठ नेता और विधायक अशोक वाजपेयी कहते हैं कि नेताजी ने पार्टी को खड़ा
किया है और शिवपाल यादव की भी उसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
ऐसे में यदि पार्टी की छवि कहीं से प्रभावित होती है तो इन लोगों को पीड़ा ज़रूर होगी.
शिवपाल यादव ने सबसे अहम मसला जो उठाया, वो ये है कि उनकी पार्टी के लोग ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं.
लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि इसके लिए सबसे ज़्यादा शह सपा में किसी नेता ने यदि दी है, तो वो शिवपाल यादव ही हैं. मथुरा में रामवृक्ष यादव को संरक्षण देने के आरोप भी उन पर लगे हैं.
बहरहाल
जानकार ये भी कहते हैं कि सरकार की आलोचना करना भले ही पार्टी और मुलायम
सिंह की रणनीति हो, लेकिन जिन बातों की आलोचना वो कर रहे हैं, उनसे जनता
भली-भांति वाकिफ़ है.
ऐसी स्थिति में इस आलोचना का उन्हें ख़ास राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा. साभार: हिन्दुस्थान समाचार