Thursday, May 31, 2012

राजनीति और भ्रष्टïचार की भेट चढ़ गई रेल यात्रियों की सुरक्षा


- घटिया समाग्री के उपयोग से बढ़ी रेल दुर्घटनायें
- रेलमंत्री को दिल्ली के बजाय कोलकाता रहना ज्यादा पसंद
- रेल सुरक्षा से संबंधित फाइलें रेल मंत्रालय में लटकीं

लखनऊ। पहले साल दो साल में रेल दुर्घटना हो जाती थी तो हंगामा मच जाता था। लेकिन भ्रष्ट और संवेदहीन होती व्यवस्था के चलते अब हर महीने या पखवाड़े बड़ी रेल दुर्घटनायें हो रही हैं और मरने वालों के परिवारों का करूण क्रंदन नकारी व्यवस्था केे नक्कारखाने में तूती की तरह हो गई है। हालात यह हैं कि एनडीए के शासनकाल में रेलवे सुरक्षा के लिये बना फड खत्म हो चुका है और रेलवे के आर्थिक हालत बिगड़ी हुई है। अभी हम्पी और बुधवार को इंदौर-रतलाम में हुई दुर्घटनाओं से आम जनता उबरी नहीं थी कि गुरूवार को जौनपुर के पास दून एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने की मनहूस खबर आई। श्ुरूआती दौर में रेलवे ने ठीकरा एस्सिटेंट लोको पॉयलट पर ठीकरा फोड़ा कि उसने इमर्जेंसी ब्रेक लगाये थे। तो वहीं वहीं पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ने बिना जांच हुये ही इसे तोडफ़ोड़ के कारण हुई दुर्घटना बता दिया। एक के बाद एक हो रही रेल दुर्घटनाओं के कारण के पीछे राजनीतिक कारण प्रमुख हैं। गठबंधन में चल रही यूपीए सरकार में रेल मंत्रालय को लेकर घमासान मचा हुआ है। दिनेश त्रिवेदी के जबरदस्ती लिये गये इस्तीफे के बाद रेल मंत्री बने मुकुल रॉय का अधिकतर समय कोलकाता में गुजर रहा है। अगर रेलवे बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो रेल मंत्री महीने में कम से कम 25 दिन कोलकाता प्रवास पर रहते हैं। इसके चलते रेलवे सुरक्षा से जुड़ी कई फाइलें रेल मंत्रालय में पड़ी रेल मंत्री के नजरे इनायत होने की बाट जोह रही हैं। पिछले कुछ सालों में ट्रेनों के पटरियों से उतरने और एक-दूसरे से टकरा जाने के हादसों में अचानक बढ़ोतरी हुई है। रेलवे की ही विजलेंस टीम ने जब इन हादसों की जांच की तो बहुत ही खौफनाक सच सामने आया। जांच में पाया गया कि रेल पटरियां, ट्रेन के पहियों को टिकाने वाला हैंगर पिन और ब्रेक ब्लॉक दोयम दर्जे की गुणवत्ता के थे। पूरे मामले में सबसे दुखद पहलू यह रहा कि ब्रेक ब्लॉक और हैंगर पिन टूटने की घटनाओं में बढ़ोतरी के बाद भी रेलवे बोर्ड ने इस दिशा में कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया है। ये ऐसे पुर्जे हैं कि अगर चलती ट्रेन में टूटे तो दुर्घटना को रोना नामुमकिन है। भ्रष्टïचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि देश भर की टे्रनों में बहुतायत में घटिया पुर्जे लग चुके हैं और उन्हें एक साथ बदलना लगभग नामुमकिन है। जुलाई 2011 में कालका हादसे के बाद बनी परमाणु वैज्ञानिक डॉ.अनिल काकोदकर की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर रेलवे ट्रैक खराब हो चुके हैं। लगभग हर ट्रेन के यात्री डिब्बे निहायत ही असुरक्षित हैं। बरसों पहले बने रेलवे पुल जर्जर हो चुके हैं। कुल मिलाकर काकोदर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सुरक्षा की जो तस्वीर बनाई थी वह निहायत ही भयावह है। रेलवे में पटरियों की देखभाल करने वाले गैंगमैन, गेटमैन और ट्रेन चलाने वाले ड्राइवरों के करीब 24 हजार पद खाली हैं। इस कमेटी ने साफ कहा था किअगले दो-तीन साल तक कोई भी नई ट्रेन चलाने या ट्रेनों में बोगियां बढ़ाये जाने के बजाय रेलवे को अपना पूरा ध्यान सुरक्षा में लगाना चहिये। पिछले दिनों ही खबर आई थी कि सुरक्षा के नाम पर लगभग 15000 करोड़ रूपया और दशकों का समय नष्टï करने के बाद रेलवे के अधिकरियों ने भी मान लिया था कि रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिये वे जिस आटामेटेड सिस्टम पर काम कर रहे थे, वह भारतीय रेल के लिये कारगर नहीं है। इससे पहले हुई हर बड़ी दुघटना के बाद जांच की घोषण के साथ साथ एक रस्मी घोषणा होती रही है कि रेलवे की सुरक्षा को और प्रभावी बनाया जायेगा। पिछले महीने ही वॉयस ऑफ मूवमेंट ने पूर्वोत्तर रेलवे में उपकरणों की खरीद में हो रही धांधली के बारे में बताया था। ऐसे ही 1998 में लुधियाना के पास खन्ना में हुई रेल दुर्घटना के बाद बनी खन्ना जांच कमेटी ने पाया था कि रेल हादसे का कारण था दोयम दर्जे कीे रेल पटरियों का उपयोग। रेलवे के एक अध्किारी ने बताया कि रेल की पटरियों में कई वजह से खामियां आ रही हैं उनमें से प्रमुख है गुणवत्ता को न कायम रख पाना। जितने भी हादसे हो रहे हैं वह या तो दिन में पीक आवर्स में हो रहे हैं या फिर देर रात। यह दोनों ही समय ऐसे हैं जब वातावरण में बदलते तापमान के कारण पटरियां अपना फैलती या सिकुड़ती हैं। अगर पटरियों की गुणवत्ता कायम रखी गई होती तो पटरियां वातावारण के तापमान से इस हद तक प्रभावित न होतीं और अपना स्वरूप कायम रखतीं। जौनपुर हादसे मे भी शुरूआती दौर में जो कारण निकलकर आ रहें हैं, उनके मुताबिक एसिस्टेंट लोको पायलट ने पटरी को टेढ़ा देखकर इमर्जेंसी ब्रेक लगा दिये जिसके चलते सात बोगियां पटरी से उतर गईं और 7 यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

Reported for Voice of Movement, Dated June 1, 2012

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